सतगुरु मधु परमहंसजी

   देवी देवल जगत में, कोटिक पूजे कोय,
         सतगुरु की पूजा किये, सबकी पूजा होय।    

सांसारिक लोग हजारों अनुष्ठान करके देवी-देवताओं की पूजा में लगे रहते हैं, जबकि, एक सच्चे पूर्ण आध्यात्मिक गुरु (सतगुरु) की पूजा से ही संपूर्ण आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति और सभी देवी-देवताओं की पूजा हो जाती है।


"संत सतगुरु मधु परमहंस साहिब" जिन्हें उनके शिष्य "साहिबजी" नाम से बुलाते है, का जन्म 18 अप्रैल 1950 (चेत सुधी पूर्णिमा) को भोपाल (मध्य प्रदेश) के जिला सीहोर में एक गरीब परिवार में हुआ था। बचपन से ही, वे बड़े चेतन हैं और बाल ब्रह्मचारी हैं।

Sahibji's image

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वर्ष 1968 में 18 वर्ष की आयु में, वे अपने गुरु - स्वामी गिरधरानंद परमहंसजी से उत्तर प्रदेश, भारत में, जिला गोंडा स्थित ग्राम हवेलिआ में मिले। स्वामी गिरधरानंद परमहंसजी संतमत (यानी परमपुरुष की भक्ति) का अनुसरण करते थे और उसी का प्रचार-प्रसार करते थे। साहिबजी अपने गुरु के प्रति बहुत समर्पित थे और मन और शरीर की गतिविधियों पर उनका असाधारण नियंत्रण था। स्वामीजी ने साहिबजी में एक आदर्श आध्यात्मिक गुरु के सभी गुणों को देखा। स्वामीजी ने अपने जीवनकाल के दौरान, 1968 में मधु परमहंसजी को केवल 18 वर्ष की आयु में अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया और उन्हें "संत सतगुरु" की उपाधि से सम्मानित किया। 1967 में 17 वर्ष की आयु में, वे महार रेजिमेंट में भारतीय सेना में शामिल हुए और 1991 तक 24 वर्ष देश की सेवा की। उन्होंने भारतीय सेना से जे सी ओ (जूनियर कमीशंड ऑफिसर) के पद से

स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लिया। 1970 में, 20 वर्ष की आयु में उन्होंने आत्माओं को जगाने की दिशा में अपनी यात्रा शुरू की। वे अपने आध्यात्मिक प्रवचनों (सत्संग) के माध्यम से ब्रह्मांड की रचना के वास्तविक ज्ञान, उसकी रचना का कारण, जीव की उत्पत्ति, श्रष्टि की रचना, विभिन्न योनिओं की उत्पत्ति, उन्हें काल निरंजन नें कैसे बांधा ताकि कोई भी जीव इस सृष्टि से बच के अमरलोक न जा सके और कैसे मनुष्य 'नाम' (सजीवन नाम / सार नाम) प्राप्त करके इस संसार सागर से निकल के अमरलोक जा सकता है। उन्होंने अपने भक्तों को 'नाम' देना शुरू किया।

साहिबजी का एकमात्र उद्देश्य है परमपुरुष की आत्माओं को मन (निराकार मन) और शरीर (माया) के जाल से मुक्त करना है ताकि आत्मा को मानव जीवन के वास्तविक उद्देश्य और महत्व के बारे में एहसास हो सके। साहिबजी को वेदों, उपनिषदों, शास्त्रों, भगवद गीता, रामायण, कुरान, ग्रंथ साहिब, बाइबिल आदि का गहन ज्ञान है। वे हर धार्मिक ग्रंथ का सम्मान करते हैं और वे कभी भी किसी धर्म या किसी भी समुदाय की निंदा नहीं करते हैं। वे एक संपूर्ण आध्यात्मिक गुरु (सतगुरु) - हैं - एक चेतन आत्मा, जिसके पास वे सभी आध्यात्मिक शक्तियां हैं जो निराकार मन और शरीर की पहुंच से परे हैं। उनके पास 'पारस सुरति' है जिससे वे अपने शिष्यों को अपने जैसा बना देते हैं। फिर शिष्य आसानी से उनके बताये सात नियमों का पालन करके इस संसार सागर से पार हो सकते हैं और अपने मूल निवास स्थान 'अमरलोक' इसीलिए साहिबजी कहते हैं: "जो चीज मेरे पास है, वह इस ब्रह्मांड में कहीं भी नहीं मिल सकती"

सामाजिक सेवा एवं मान्यताएं

गांधी शांति पुरस्कार 2003 प्राप्त करते हुए साहिबजी
अंबेडकर अवार्ड 2018 प्राप्त करते साहिबजी

साहिबजी बहुत परोपकारी और दयालु हैं। वे नियमित रूप से उन गरीब शिष्यों के विवाह की व्यवस्था करते हैं जो स्वयं इसका खर्च नहीं उठा सकते। वे अपने आश्रमों में जरूरतमंदों को मुफ्त चिकित्सा सहायता भी मुहैया कराते हैं। इसके अलावा वे किसी भी आपदा के समय हर प्रकार की मानवीय सहायता में हमेशा सबसे आगे रहते हैं। उन्होंने हमेशा जरूरत के समय बड़े पैमाने पर समाज की मदद की है।

जम्मू और कश्मीर राज्य में समाज की नि: स्वार्थ सेवा के लिए, उन्हें वर्ष 2003 में 'महात्मा गांधी सेवा पुरस्कार' से सम्मानित किया गया।

वर्ष 2008 में अमरनाथ आंदोलन की वजह से जम्मू-कश्मीर राज्य में कर्फ्यू लगाया गया था जो 61 दिनों तक चला था। उन्होंने 3 स्थानों पर आम लोगों के लिए लंगर का लगाया: एसएमजीएस अस्पताल, बख्शी नगर में सरकारी मेडिकल अस्पताल और डोगरा चौक।

2018 में उन्हें शांति, सद्भाव, पर्यावरण, वैकल्पिक रोजगार और सामाजिक बुराइयों के उन्मूलन को बढ़ावा देने के लिए 'अंबेडकर राष्ट्रीय पुरस्कार' से सम्मानित किया गया।

मार्च-अप्रैल’20 में भारत में COVID19 के कारण लॉकडाउन के दौरान, उन्होंने जम्मू-कश्मीर राज्य में प्रतिदिन 10000 लोगों को मुफ्त भोजन बांटा। इसके अलावा उन्होंने किट वितरित किये जिसमे 10 किलो गेहूं का आटा, 10 किलो चावल, 2 किलो दाल, 1 किलो चीनी, 1 लीटर तेल, 1 किलो नमक, मसाले इत्यादि युक्त किट वितरित किए हैं। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में प्रतिदिन 800 लोगों को मुफ्त भोजन बांटा जा रहा हैं और इंदौर में रोजाना जरूरतमंदों को किट वितरित किए जा रहे हैं।

सात नियम

साहिबजी अपने भक्तों से 'सात नियम':अपनाने को कहते हैं:
1. सच बोलें।
2. मांस ना खाएं
3. नशा ना करें
4. जुआ ना खेलें
5. चोरी ना करें
6. परस्त्री गमन ना करें
7. हक़ की कमाई खाएं

   काग पलट हंसा कर दीना,
          ऐसा नाम पुरुष मैं दीना।   

मैं आत्मा को सजीवन नाम देता हूं जो परमपुरष स्वयं दिया है और वो एक कौवे को हंस में बदलने की शक्ति रखता है।